Friday, October 9, 2015

विज्ञान भैरव - विधि 02

विज्ञान भैरव - विधि 02 ( " या जब कभी अन्तः श्वास और बहिर्श्वांस एक दूसरे में विलीन होती हैं , उस क्षण में ऊर्जारहित , ऊर्जापूरित केन्द्र को स्पर्श करो . " ) हम केन्द्र और परिधि में विभाजित हैं . शरीर परिधि है . हम शरीर को , परिधि को जानते हैं . लेकिन हम यह नहीं जानते कि कहाँ केन्द्र है . जब बहिर्श्वांस अन्तःश्वास में विलीन होती है . जब वे एक हो जाती हैं , जब तुम यह नहीं कह सकते कि यह अन्तःश्वास है कि बहिर्श्वांस , जब यह बताना कठिन हो कि श्वास भीतर जा रही है कि बाहर जा रही है , जब श्वास भीतर प्रवेश कर बाहर की तरफ मुड़ने लगती है , तभी विलय का क्षण है . तब श्वास न बाहर जाती और न भीतर आती है . श्वास गतिहीन है . जब वह बाहर जाती है , गतिमान है ; जब वह भीतर आती है , गतिमान है . और जब वह दोनों में कुछ भी नहीं करती है , तब वह मौन है , अचल है . और तब तुम केन्द्र के निकट हो . आने वाली और जाने वाली श्वासों का यह विलय-बिंदु तुम्हारा केंद्र है . इसे इस तरह देखो . जब श्वास भीतर जाती है तो कहाँ जाती है ? वह तुम्हारे केन्द्र को जाती है . और जब वह बाहर जाती है तो कहाँ से जाती है ? केन्द्र से बाहर जाती है . इसी केन्द्र को स्पर्श करना है . यही कारण है कि ताओवादी संत और झेन संत कहते हैं कि सर तुम्हारा केन्द्र नहीं है , नाभि तुम्हारा केन्द्र है . श्वास नाभि - केन्द्र को जाती है , फिर वहाँ से लौटती है , फिर-फिर उसकी यात्रा करती है . शिव कहते हैं : " जब कभी अन्तः श्वास और बहिर्श्वांस एक दूसरे में विलीन होती हैं , उस क्षण में ऊर्जारहित , ऊर्जापूरित केन्द्र को स्पर्श करो . " शिव परस्पर विरोधी शब्दावली का उपयोग करते हैं : ऊर्जारहित , ऊर्जापूरित . वह ऊर्जारहित है , क्योंकि तुम्हारे शरीर , तुम्हारे मन उसे ऊर्जा नहीं दे सकते . तुम्हारे शरीर की ऊर्जा और मन की ऊर्जा वहाँ नहीं है , इसलिए जहाँ तक तुम्हारे तादात्म्य का संबंध है , वह ऊर्जारहित है . लेकिन वह ऊर्जापूरित है , क्योंकि उसे ऊर्जा का जागतिक स्रोत उपलब्ध है . तुम्हारे शरीर की ऊर्जा तो ईंधन है -- पेट्रोल जैसी . तुम कुछ खाते-पीते हो उससे ऊर्जा बनती है . खाना-पीना बंद कर दो और शरीर मृत होजायेगा . तुरंत नहीं , कम से कम तीन महीने लगेंगे , क्योंकि तुम्हारे पास पेट्रोल का एक खजाना भी है . तुमने बहुत ऊर्जा जमा की हुई है , जो कम से कम तीन महीने काम दे सकती है . शरीर चलेगा , उसके पास जमा ऊर्जा थी . और किसी आपातकाल में उसका उपयोग हो सकता है . इसलिए शरीर - ऊर्जा ईंधन - ऊर्जा है . केन्द्र को ईंधन - ऊर्जा नहीं मिलती है . यही कारण है कि शिव उसे ऊर्जारहित कहते हैं . वह तुम्हारे खाने-पीने पर निर्भर नहीं है . वह जागतिक स्रोत से जुड़ा हुआ है , वह जागतिक ऊर्जा है . इसलिए उसे " ऊर्जारहित , ऊर्जापूरित केन्द्र " कहतें हैं . जिस क्षण तुम उस केन्द्र को अनुभव करोगे जहाँ से श्वास जाति - आती है , जहाँ श्वास विलीन होती है , उस क्षण तुम आत्मोपलब्ध हुए . Pt. krishan kumar bijlwan. Top International Vaastu Association,world famous astrologer & Numerologist Chairman Phone No. +917060329470 +917534087808 page: https://facebook.com/kaaldarshakbindu Kaaldarshakpoint.blogspot.com

विज्ञान भैरव - विधि 01

विज्ञान भैरव - विधि 01 ( " हे देवी , यह अनुभव दो श्वासों के बीच घटित हो सकता है. श्वास के भीतर आने के पश्चात् और बाहर लौटने के ठीक पूर्व -- श्रेयस है, कल्याण है. " ) जब तुम्हारी श्वास भीतर आये तो उसका निरिक्षण करो. उसके फिर बाहर या ऊपर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण के लिए , या क्षण के हजारवें भाग के लिए श्वास बंद हो जाती है. श्वास भीतर आती है और वहाँ एक बिंदु है जहाँ वह ठहर जाती है. फिर श्वास बाहर जाती है तो फिर वहाँ भी एक क्षण के लिए या क्षणांश के लिए ठहर जाती है. और फिर वह भीतर के लिए लौटती है. श्वास के भीतर या बाहर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण है जब तुम श्वास नहीं लेते हो. उसी क्षण में घटना घटनी संभव है ; क्योंकि जब तुम श्वास नहीं लेते हो तो तुम संसार में नहीं होते हो. समझ लो कि जब तुम श्वास नहीं लेते हो तब तुम मृत हो ; तुम तो हो, लेकिन मृत. लेकिन यह क्षण इतना छोटा है कि तुम उसे कभी देख नहीं पाते. प्रत्येक बहिर्गामी श्वास मृत्यु है और प्रत्येक नई श्वास पुनर्जन्म है. भीतर आने वाली श्वास पुनर्जन्म है ; बाहर जाने वाली श्वास मृत्यु है . बाहर जाने वाली श्वास मृत्यु का पर्याय है ; अंदर आने वाली जीवन का . इसलये प्रत्येक श्वास के साथ तुम मरते हो और फिर जन्म लेते हो . दोनों के बीच का अंतराल बहुत क्षणिक है , लेकिन पैनी दृष्टि , शुद्ध निरिक्षण और अवधान से उसे अनुभव किया जा सकता है . और यदि तुम उस अंतराल को अनुभव कर सको तो शिव कहते हैं कि श्रेयस उपलब्ध है . तब और किसी चीज की जरुरत नहीं है . तब तुम आप्तकाम हो गए . तुमने जान लिया ; घटना घट गयी . प्रयोग करो और तुम उस बिंदु को पा लोगे . उसे अवश्य पा सकते हो ; वह है . तुम्हें या तुम्हारी संरचना में कुछ जोड़ना नहीं है ; वह है ही . सब कुछ है ; सिर्फ बोध नहीं है . कैसे प्रयोग करो ? पहले भीतर आने वाली श्वास के प्रति होश पूर्ण बनो . उसे देखो . सब कुछ भूल जाओ और आनेवाली श्वास को , उसके यात्रा - पथ को देखो . जब श्वास नासपुटों को स्पर्श करें तो उसको महसूस करो . श्वास को गति करने दो और पूरी सजगता से उसके साथ यात्रा करो . श्वास के साथ ठीक कदम से कदम मिलाकर नीचे उतरो ; न आगे जाओ और न पीछे पडो . उसका साथ न छूटे ; बिलकुल साथ-साथ चलो . स्मरण रहे , न आगे जाना है और न छाया की तरह पीछे चलना है -- समांतर चलो , युगपत . श्वास और सजगता को एक हो जाने दो . श्वास नीचे जाती है तो तुम भी नीचे जाओ . और तभी उस बिंदु को पा सकते हो जो दो श्वासों के बीच में है . यह आसान नहीं है . श्वास के साथ अंदर जाओ ; श्वास के साथ बाहर जाओ . अगर तुम श्वास के प्रति सजगता का , बोध का अभ्यास करते गए तो एक दिन अनजाने ही तुम अंतराल को पा जाओगे . क्योंकि जैसे-जैसे तुम्हारा बोध तीव्र , गहरा और सघन होगा , जैसे-जैसे तुम्हारा बोध स्पष्ट आकार लेगा -- जब सारा संसार भूल जायेगा ,बस श्वास का आना-जाना ही एकमात्र बोध रह जायेगा -- तब अचानक तुम उस अंतराल को अनुभव करोगे जिसमें श्वास नहीं है. Pt. krishan kumar bijlwan. Top International Vaastu Association,world famous astrologer & Numerologist Chairman Phone No. +917060329470 +917534087808 page: https://facebook.com/kaaldarshakbindu Kaaldarshakpoint.blogspot.com

विज्ञान भैरव

विज्ञान भैरव भूमिका `` विज्ञान है; दर्शन नहीं है. दर्शन को समझना आसान है; क्यूंकि उसके लिए सिर्फ मस्तिष्क की जरूरत पड़ती है. यदि तुम भाषा जानते हो, यदि तुम प्रत्यय समझते हो तो तुम दर्शन समझ सकते हो. उसके लिए तुम्हें बदलने की, संपरिवर्तित होने की कोई जरूरत नहीं है. तुम जैसे हो वैसे ही बने रहकर दर्शन को समझ सकते हो. लेकिन वैसे ही बने रहकर नहीं समझ सकते हो. समझने के लिए तुम्हारे बदलने की जरूरत रहेगी; बदलाहट की ही नहीं, आमूल बदलाहट की जरूरत होगी. जब तक तुम बिलकुल भिन्न नहीं हो जाते हो, तब तक नहीं समझा जा सकता. क्यूंकि कोई बौद्धिक प्रस्तावना नहीं है; वह एक अनुभव है. और जब तक तुम अनुभव के प्रति संवेदनशील, तैयार, खुले हुए नहीं होते, तब तक यह अनुभव तुम्हारे पास आने को नहीं है. देवी पूंछती हैं : प्रभो, आपका सत्य क्या है ? शिव इस प्रश्न का उत्तर न देकर उसके बदले में एक विधि देते हैं. अगर देवी इस विधि के प्रयोग से गुजर जाएँ तो वे उत्तर पा जाएँगी. वे कहते हैं : यह करो और तुम जान जाओगी. ये कुछ विधियाँ सभी लोगों के काम आ सकती हैं. हो सकता है, कोई विशेष उपाय तुमको ठीक न पड़े. इसलिए तो शिव अनेक उपाय बताये चले जाते हैं. कोई एक विधि चुन लो जो तुमको जंच जाये. ये कुछ विधियाँ तुम्हारे लिए चमत्कारिक अनुभव बन सकती हैं, या तुम महज उन्हें सुन सकते हो. यह तुम पर निर्भर है, मैं सभी संभव पहलुओं से प्रत्येक विधि की व्याख्या करूँगा. अगर तुम उसके साथ कुछ निकटता अनुभव करो तो तीन दिनों तक उससे खेलो और फिर छोड़ दो. अगर वह तुम्हें जंचे, तुम्हारे भीतर कोई तार बजा दे तो फिर तीन महीने उसके साथ प्रयोग करो. शिव यहाँ कुछ विधियाँ प्रस्तावित कर रहे हैं. इसमें सभी संभव विधियाँ सम्मिलित हैं. यदि इनमे से कोई भी तुम्हारे भीतर नहीं 'जंचती' है, कोई भी तुम्हें यह भाव नहीं देती है कि वह तुम्हारे लिए है तो फिर कोई भी विधि तुम्हारे लिए नहीं बची. इसे ध्यान में रखो. तब आध्यात्म को भूल जाओ और खुश रहो. वह तब तुम्हारे लिए नहीं है. लेकिन यह कुछ विधियाँ तो समस्त मानव - जाति के लिए हैं. और वे उन सभी युगों के लिए हैं जो गुजर गए हैं और आने वाले हैं. और किसी भी युग में एक भी ऐसा आदमी नहीं हुआ और न होने वाला ही है, जो कह सके कि ये सभी कुछ विधियाँ मेरे लिए व्यर्थ हैं. असंम्भव ! यह असंम्भव है ! प्रत्येक ढंग के चित्त के लिए यहाँ गुंजाइश है. प्रत्येक किस्म के चित्त के लिए विधि है. कई विधियाँ है जिनके उपयुक्त मनुष्य अभी उपलब्ध नहीं हैं, वे भविष्य के लिए हैं. और ऐसी विधियाँ भी हैं जिनके उपयुक्त लोग रहे नहीं, वे अतीत के लिए हैं. अनेक विधियाँ हैं जो तुम्हारे लिए ही हैं. सूत्र Pt. krishan kumar bijlwan. Top International Vaastu Association,world famous astrologer & Numerologist Chairman Phone No. +917060329470 +917534087808 page: https://facebook.com/kaaldarshakbindu Kaaldarshakpoint.blogspot.com

Monday, November 24, 2014

6.भाग्यांक द्वारा बाधाएं दूर करें…

6.भाग्यांक द्वारा बाधाएं दूर करें… कई बार ऐसा देखने में आता है कि हम जो भी अपने या अपने परिवार के लिए कार्य करने को निकलते है, उसमें हमें विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है. कुछ बाधाए तो जानी पहचानी होती है और कुछ अकस्मात हमारें सामने आ खड़ी होती है अथवा हम 5 काम करने हेतु निकलते है तो उनमें से बड़ी मुश्किल से एक या दो ही काम हो पाते है. ऐसी बाधाओं को दूर करने के लिए एक बहुत ही सरल प्रयोग है. इस प्रयोग के अंतर्गत अपनी जन्म तिथि सम्पूर्ण का प्रयोग कर एक इकाई भाग्यांक प्राप्त कर लें. उसके बाद अलग अलग भाग्यांक के अनुसार अपनी बाधा शांत करने के लिए प्रयोग करे. निश्चय ही पालन करने से आपकी आने वाली समस्त बाधाएं दूर होंगी. जन्म तिथि से भाग्यांक निकालने की विधि निम्न है...... माना कि किसी व्यक्ति का जन्म 27.06.1962, को हुआ है. तो उसका भाग्यांक होगा..2+7+0+6+1+9+6+2= 33= 3+3= 6, भाग्यांक 6 है इसलिए भाग्यां 6 का निम्नलिखित प्रयोग करे तो लाभ होगा........ भाग्यांक 1:- जिनका भाग्यांक एक है वह अपनी जेब, पर्स में सफेद रेशमी चौकोर कपड़े (किसी भी साइज) में लाल रंग के गोटे किनारी द्वारा अपने भाग्यांक का नंबर 1 लिख कर रविवार सुबह के समय रखें. इसे प्रतिदिन हमेशा अपने पास रखने से यश वृद्धि होगी और बाधाएं दूर होंगी. भाग्यांक 2:- जिनका भाग्यांक दो है वह अपनी जेब, पर्स में नीले रंग के रेशमी कपडे में सफेद रंग के चमकीले सितारे लगवा कर सोमवार रात्री के समय से रखना आरम्भ करे तो जीवन की समस्त बाधाए किसी भी प्रकार की हो वो सब समाप्त होने लगेंगी. भाग्यांक 3:- जिनका भाग्यांक तीन है वह अपनी जेब, पर्स में पीले रंग के रेशमी कपडे में चांदी का चौकोर पीस किसी भी साइज का हो उसे लपेट कर पीले धागे से बाँध ले.वृहस्पतिवार सुबह के समय से रखें. मनोवांछित फल प्राप्त होंगे. भाग्यांक 4:- जिनका भाग्यांक चार है वह अपनी जेब, पर्स में भूरे रंग (brown) के रेशमी कपड़े में चार दाने काली मिर्च के बाँध कर रखें. इसके रखने से भाग्यांक चार वालों की समस्त रुकावटें दूर होनी आरम्भ हो जाएगीं. इसे शनिवार शाम के समय रखें. भाग्यांक 5:- जिनका भाग्यांक पांच है तो वह अपनी जेब, पर्स में हरे रंग के रेशमी कपड़े में एक ताम्बे का छेद वाला सिक्का लपेट कर हरे रंग के धागे से बाँध दें. और इसे बुधवार दोपहर के समय से रखना आरम्भ कर दे तो जीवन में परेशानिया समाप्त होने लग जायेंगी. भाग्यांक 6:- जिनका भाग्यांक छः है तो वह अपनी जेब, पर्स में गुलाबी रंग के रेशमी कपड़े में सफेद चमकीले गोटे से 6 का अंक लिख कर शुक्रवार सुबह के समय रखें और रखने के बाद कोई भी सफेद मिठाई का सेवन करें तो बाधाएं दूर हो कर सुख की प्राप्ति होगी. भाग्यांक 7:- जिनका भाग्यांक सात है तो वह अपनी जेब, पर्स में सुनहरी रंग का रेशमी कपड़ा चौकोर लेकर उसमें चुटकी भर पीली सरसों डाल कर गाँठ बाँध दें. और वृहस्पतिवार के दिन सुबह के समय रखने से मनोकामना पूर्ण होने लगती है . भाग्यांक 8:- जिनका भाग्यांक आठ है तो वह अपनी जेब, पर्स में पीले रंग के रेशमी कपड़े में अखंडित चावल के २१ दाने रख कर लपेट कर सफेद धागे से बाँध दे. शनिवार सुबह के समय से रखना आरम्भ कर दे तो रुकावट अपने आप समाप्त होने लगेंगी. और कार्य शीघ्र पूरा होगा. भाग्यांक 9:- जिनका भाग्यांक नौ है तो वह अपनी जेब, पर्स में लाल रंग के रेशमी कपड़े में सफेद रंग के गोटे से त्रिशूल की आकृति बना कर मंगलवार शाम के समय रखे. इसके रखने से मनवांछित फल की प्राप्ति होगी. यह ध्यान रखें कि भाग्यांक के उपरोक्त सभी प्रयोग शुक्ल पक्ष अर्थात चांदनी रातों के पखवाड़े में किये जाए तो शीघ्र फल प्राप्त होंगे. एक बार प्रयोग करने के छह माह बाद उसे जल प्रवाहित कर इसी विधि अनुसार नया रख दे. यह प्रयोग विश्वसनीय तथा कई व्यक्तियों की सफलता की आधार पर लिखे गयें है. मुझे आशा है कि आप भी इसे कर सफल व्यक्ति बनें..... शुभमस्तु !! Pt. krishan kumar bijlwan. Top International Vaastu Association Phone No. +917060329470 +917534087808

Wednesday, September 3, 2014

5.जूते चप्पल बाहर रखेंगे तो बाधाएं दूर होंगी...

मकान की दांयी तरफ की खिड़कियों का बहुत महत्व होता है. ये व्यक्ति के जीवन और समृद्धि से जुड़ी होती है. मकान की दांयी तरफ की खिड़कियों का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य होता है. तथा सूर्य, पुत्र सन्तान का प्रतिन निधि भी है. यदि मकान की दांयी तरफ की खिड़कियां कमजोर और टूटी हुई है तो परिवार में पुरुष संतति कष्ट में रहती है. अगर दांयी खिडकी में दरार है तो परिवार में पुरुष वर्ग पर संकट बना रहता है. दरार राहू तथा केतु का प्रतिनिधित्व करती है. जिन्हें सूर्य का शत्रु माना जाता है. दांयी ओर की मुख्य खिडकी रसोई में खुलती है तो परिवार में पुरुष वर्ग के लिए शुभ होता है. क्योंकि सूर्य खिडकी का प्रतिनिधि है, शुक्र रसोई घर का प्रतिनिधि है, और मंगल अग्नि का कारक है. ऐसे घर में रहने वाले लोग पत्नी के सहयोगी होते है.


यदि दांयी ओर की खिडकी किसी गोदाम में या स्टोर में खुलती है या किसी भी तरह का खिडकी में दोष उत्पन्न हो रहा हो तो पिता-पुत्र में आपस में नहीं बनती है. वे सदा किसी ना किसी बात पर पर आपस में लड़ते ही रहते है. परिवार के पुत्र तमोगुणी होने लगते है. घर में सूर्य का प्रकाश पहुंचना बहुत ही जरूरी होता है. जिस घर में सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता है, पूर्व में कोई खिडकी नहीं होती है. या घर के अन्दर दिन में भी अँधेरा रहता है, गेंहू आदि खाने पीने की चीजों पर प्रकाश की किरणें नहीं पहुँचती है तो समझ लीजिए उस घर में सूर्य-शनि का कुप्रभाव है. ऐसे घर के स्वामी और परिजनों को नींद ना आने की बिमारी, शरीर में टूटन, बेचैनी सदा ही बनी रहेगी.


किसी भी घर में दांयी या बाँयी खिडकी, आगंतुक व्यक्ति के प्रवेश एवं निकलने के समय दांयी ओर व बाँयी ओर की खिडकी का विचार किया जाता है. घर में बाँयी खिडकी का प्रति निधि ग्रह चन्द्रमा है. ज्योतिष में चन्द्रमा स्त्री ग्रह है और जगत माता का रूप है. अगर घर की बाँयी ओर वाली खिडकी ठीक ठाक है. उनमे से पर्याप्त हवा व प्रकाश घर में आ रहा है तो तो कोई गंभीर समस्या घर में उत्पन्न नहीं होती है. घर की बेटियाँ तथा स्त्रियाँ हमेशा सुखी रहती है. इसके विपरीत घर के बाँयी ओर यदि खिड़कियां ही ना हो तो घर में एक व्यक्ति अवश्य ही निठल्ला रहता है. और वह मानसिक रूप से भी विकृत एवं बीमार रहता है. चन्द्रमा मस्तिष्क का स्वरूप है. और घर में बाँयी ओर का भाग पाप ग्रह केतु से प्रभावित रहता है.


अगर घर में बाँयी खिडकी के आसपास या सामने दरार होती है तो वंहा केतु पाप ग्रह का प्रभाव अवश्य होने लगता है. इसके प्रभाव से घर में स्त्रियाँ सदा ही रोग से पेशान रहेंगी व मानसिक रूप से भी चिडचिडी रहेंगी. उनका किसी काम में मन नहीं लगेगा. इसलिए वास्तु और ज्योतिष दोनों के अनुसार घर या भवन के दांयी और बाँयी खिड़कियां सूर्य देव तथा चंद्र देव का प्रतिनिधित्व करती है. साथ ही यह दोनों ग्रह हमेशा राहू व केतु से भी प्रभावित रहते है. यही कारण है

कि यदि कोई जूते या चप्पल पहन कर घर या भवन में प्रवेश करता है तो राहू तथा केतु ग्रह भी उसके साथ प्रवेश कर जाते है. इसलिए घर में प्रवेश करते समय जूते, चप्पल बाहर उतारे जाने का प्रचलन हमारे शास्त्रों में था जिससे कि घर में कोई बाधा या रुकावट ना आए. अभी भी यदि इन नियमों को हम घर में अपना ले तो जीवन सुखी बना सकते है क्योंकि जब जीवन में बाधा या रुकावट ही नहीं रहेगी तो फिर हमारा जीवन सुख समृद्धि से परिपूर्ण रहेगा ...


शुभमस्तु!!
Pt. krishan kumar bijlwan.  
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4.मुद्रा द्वारा रोग को दूर भगाएं....      
                   
मानव शरीर का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है. ये पंचतत्व है- अग्नि, वायु, पृथ्वी, जल और आकाश. किसी भी शरीर की व्यवस्था हेतु इन पंचतत्वों का संतुलन होना अति आवश्यक है.मुद्रा विज्ञान के अनुसार हमारे हाथ की पांच उंगलियां भी इन्हीं पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है. आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकार किया है कि इन पाँचों उँगलियों से विद्युत चुम्बकीय तरंगे निकलती है. यदि इन उँगलियों पर सही मात्रा से स्पर्श अथवा दबाव दिया जाये तो पंच तत्वों का संतुलन स्थापित होता है. और कई बीमारियाँ दूर होकर शरीर स्वस्थ बनता है. उँगलियों की सही स्थति बना कर आपस में स्पर्श कराने अथवा दबाव देने से विभिन्न प्रकार की मुद्राओं का निर्माण होता है. आज यहां पर प्रमुख दो मुद्राओं का विवरण प्रस्तुत कर रहा हूं शेष मुद्राओं का अगले लेखों में विवरण देने का प्रयास करूँगा.
ज्ञान-मुद्रा:-- अंगूठे और तर्जनी के अग्र सिरों को आपस में मिलाने से ज्ञानमुद्रा का निर्माण होता है. शेष तीनों उंगलियों को सीधा, मिला हुआ तथा आरामदायक स्थिति में रखा जाता है.


ज्ञान मुद्रा करने से लाभ:-- इस मुद्रा को करने से मांसपेशियों तथा दिमाग को लाभ प्राप्त होता है. पदमासन करते समय इस मुद्रा को करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है. किन्तु चलते, उठते, बैठते, घूमते समय भी इस मुद्रा को करके इसके लाभ अर्जित किये जा सकते है. हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार इस मुद्रा को नियमपूर्वक करके जीवन रेखा तथा बुध रेखा (स्वास्थ्य रेखा) के विकार दूर किये जा सकते है.
इस मुद्रा का मानसिक स्थिति पर अदभुत प्रभाव देखने में आया है. इसके नियमित अभ्यास से अनिंद्रा, दिमागी असंतुलन, क्रोध, निराशा, तनाव तथा आलस्य का नाश हो जाता है. इसके साथ ही मनुष्य को मानसिक शान्ति का अनुभव होता है. चिंतन शक्ति, याददाश्त तथा एकाग्रता बढ़ाने में भी उह मुद्रा विशेष रूप से सहायक सिद्ध हुई है. निरन्तर तथा नियमित अभ्यास के द्वारा व्यक्ति अपनी छठी इन्द्रिय को भी विकसित कर सकता है.

वायु-मुद्रा:- इस मुद्रा को बनाने के लिए तर्जनी को अंगूठे के निचले यानी उदगम स्थान पर रखा जाता है. तथा अंगूठे के अग्र भाग से तर्जनी पर थोड़ा दबाव दिया जाता है. शेष तीनों उंगलियां सीढ़ी रहती है.

वायु-मुद्रा करने से लाभ:-- वायु (वात) का असंतुलन होने से शरीर कई प्रकार की बीमारियों से घिर जाता है. निरन्तर 45 मिनट तक वायु मुद्रा का अभ्यास करने से वातजन्य रोगों से मुक्ति मिलती है. हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार इस मुद्रा के अभ्यास के द्वारा शनि पर्वत तथा शनि रेखा (भाग्य रेखा) के दोषों को दूर किया जा सकता है.
आर्थराईटिस, पैरालाइसिस तथा स्पोंदिलाइसिस जैसी पीड़ादायक बीमारियों में यह मुद्रा विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध हुई है. शीघ्र लाभ प्राप्त करने के लिए बीमार व्यक्ति को यह मुद्रा अधिक से अधिक समय तक करनी चाहिए. वात दोष द्वारा उत्पन्न पेट दर्द, नाभि का अपने स्थान से खिसकना, हर्निया, गर्दन का दर्द, आदि में यह मुद्रा आश्चर्यजनक रूप से लाभ पंहुचाती है. वायु मुद्रा चेहरे के लकवा में भी सहायक सिद्ध होती है. प्रतिदिन 15 मिनट से 25 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करने से अच्छे परिणाम दिखाई देने लगते है. पूर्णतया लाभ हो जाने पर इस मुद्रा को रोक देना चाहिए........
शेष मुद्राएं क्रमशः...........
Pt. krishan kumar bijlwan.
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कुछ कहना चाहते है,आपसे आपके स्वप्न...

3.कुछ कहना चाहते है,आपसे आपके स्वप्न...

स्वप्न मनुष्य के लिए बड़े ही आकर्षक लुभावने और रहस्यमय होते है. डरावने और बुरे स्वप्न जहां उसे भयभीत करते है. वहीं दिलचस्प, मनोहारी और अच्छे स्वप्न उसे आत्मविभोर कर देते है. रात्री में सुप्त अवस्था में देखे गए स्वप्नों के स्वप्न जाल में घिरा वह सारा दिन एक अजीब सी खुशी का अनुभव करता है.एक अजीब सी ऊर्जा उसके भीतर प्रवाहित होती रहती है. मनुष्य स्वभाव ही ऐसा है, जो बुरे स्वप्न के फल को भी जानना चाहता है.और अच्छे स्वप्न के फल को भी जानने के लिए उत्सुक रहता है. आखिर स्वप्न क्या है, जो सदियों से मनुष्य को अपने शुभ अशुभ संकेतों द्वारा सचेत करता रहा है. असल में स्वप्न व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक ऐसा “भाग्य सूचक” है. जो वह सब कुछ उसको निन्द्रावस्था में बता जाता है. जो उसके जीवन में शुभ अशुभ घटने वाला होता है. ऐसी सूक्ष्म और प्रामाणिक जानकारी मनुष्य को किसी भी पद्धति से नहीं मिल सकती है.

कुछ स्वप्न बड़े ही विचित्र और आश्चर्यजनक होते है. व्यक्ति उन्हें देख कर अवाक रह जाता है. कि वह स्वप्न में कैसे आसमान में उड़ रहा था. कुछ स्वप्न ऐसे भी होते है. जो भविष्य में घटने वाली शुभ अशुभ घटनाओं का बोध कराते है. और कुछ स्वप्न बिलकुल ही मानव जीवन की सच्चाइयो से जुड़े होते है.


आप अगर रात के प्रथम पहर में कोई स्वप्न देखते है तो उस स्वप्न का शुभ या अशुभ फल आपको साल भर में मिलने की संभावना रहती है. रात के दूसरे पहर में आप कोई स्वप्न देखते है.उसका शुभ या अशुभ फल मिलने का समय आठ महीने का होता है. रात के तीसरे पहर में आप कोई स्वप्न देखते है तो तीन महीने में उसका शुभ अशुभ फल मिलता है. रात के चौथे पहर के स्वप्न के फल प्राप्ति का समय एक माह होता है. और जो स्वप्न सुबह भोर काल में देखे जाते है उसका फल शीघ्र ही आपको मिल जाता है. दिन निकलने के बाद देखे जाने वाले स्वप्नों का फल आधे माह के भीतर ही मिल जाते है.
आपकी यदि शादी नहीं हुई है, आप अभी कुंवारे है. रात की बेला में निर्विघ्न रूप से सो रहे है. तभी आप स्वप्न में देखते है कि कोई हथियार आपके सामने फर्श पर पड़ा हुआ है. इसका फल बहुत ही शुभ है अर्थात आपको आने वाले समय में शीघ्र ही जीवन साथी मिलने वाला है. अगर स्वप्न में टूटा हुआ हथियार देखते है तो इसका फल अशुभ है अर्थात जीवन साथी के मिलने में विलम्ब होगा. अगर यही स्वप्न युवा लड़की देखती है तो भी यही फल प्राप्त होगा.

आप किसी खूबसूरत युवा स्त्री से वर्तमान में प्यार कर रहे है और रात को स्वप्न में आपने देखा कि भालू आपके सामने खड़ा है तो मामला गडबड है. इसका फल आपके लिए शुभ नहीं है. क्योंकि स्वप्न में भालू को देखना इस बात का सूचक है कि आपकी प्रमिका पर कोई दूसरा पुरुष भी डोरे डाल रहा है. और वह उसकी ओर खींचती चली जा रही है. जो निश्चय ही आपके लिए शुभ नहीं है. अगर स्वप्न में भालू आपको पेड़ पर चडता हुआ नजर आता है तो इसका फल बहुत ही शुभ होता है. आपको भविष्य में मनपसंद जीवनसाथी मिलने वाला है. यदि उपरोक्त स्वप्न को युवा लड़की देखती है तो उसे भी यही फल प्राप्त होता है.

आप यदि शादीशुदा एक महिला है. और स्वप्न में आपने अपने पति को काला चश्मा लगाते हुये देख रही है और उनके साथ कोई काला पशु भी है तो समझ लीजिए कि आपके पति का किसी दूसरी स्त्री के साथ संबंध चल रहा है. आप अपने स्वप्न को अधिक से अधिक लोगो को बताए फल का अशुभ प्रभाव कम होता है.

आप एक युवा स्त्री है और रात को स्वप्न में आप किसी खूबसूरत और भोगविलास की सुख सुविधाओं से संपन्न बैडरूम में आराम फरमा रही है. तो यह स्वप्न आपके लिए शुभ नहीं है इसका मतलब यह है कि भविष्य में आपके किसी पुरुष के साथ संबंध बनने वाले है जिसके कारण आपकी इज्जत और मान सम्मान की हानि होने की संभावना रहेगी. रामायण का पाठ करने या सुनने से इस स्वप्न के अशुभ फल की शान्ति होगी.

आप रात्री काल में गहरी नींद में सो रहे है और स्वप्न में आप देखते है कि कुम्हार घड़ा बना रहा है. तो समझ लीजिए कि अब आपके कष्टों के दिन दूर होने वाले है . इस स्वप्न का फल अत्यंत ही शुभ और समृद्धिदायक होता है. और यदि स्वप्न में आप अपने से उच्चस्थ पदस्थ पुरुष या अधिकारी से अशिष्टता से बात कर रहे है या अभद्र व्यवहार कर रहे है तो आपके लिए इस स्वप्न का फल शुभ है आप जो भी व्यवसाय या कार्य कर रहे होते है उसमें दिनोंदिन उन्नति होनी आरम्भ हो जायेगी.

यदि आप स्वप्न में देखते है कि आपका मकान मालिक आपसे किराया मांग रहा है तो समझ लीजिए कि इस स्वप्न का फल अति उत्तम है. भविष्य में आप खुद का मकान लेने वाले है या आपके व्यवसाय या नौकरी में उन्नति होने वाली है. यदि स्वप्न में आपको अचानक ही छींक आती है और आप फ़ौरन ही अपने रुमाल से अपनी नाक साफ़ करने लगे है तो इस स्वप्न का फल आपके लिए अति उत्तम और ऐश्वर्यशाली है. भविष्य में आपकी आय में वृद्धि होगी. या आय का दूसरा स्रोत मिलेगा. जिससे आपका काया कल्प होने वाला है.

यदि आप स्वप्न में किसी बच्चे को गोद में लेते है तो स्वप्न शुभ फलदायक होता है. आपको भविष्य में जुए, लॉटरी या सट्टे से बगैर कमाए ही धन मिल सकता है.

यदि आप स्वप्न में देखते है कि एक शेर आपके सामने आकार गर्जना कर रहा है.आपकी आँखे डर के मारें सहसा ही खुल जाती है. आप जितना डरे हुएं है उतना ही स्वप्न आपके लिए शुभ होगा. आने वाले दिनों में आपको अनेक सुन्दर स्त्रियों का स्नेह और शारीरिक सुख मिलने वाला है....

शास्त्रों के अनुसार यदि अशुभ स्वप्न किसी भी प्रकार का हो या हमे पता नहीं है कि यह स्वप्न शुभ है या अशुभ है. उसका फल हमारे लिए अशुभ ना हो इसलिए इस दोष के निवारण के लिए प्रातःकाल किसी दूध देने वाली गाय को हरा चारा, घांस आदि डाल कर प्रार्थना कर दे इससे स्वप्न के दोष की निवृति होगी............
Pt. krishan kumar bijlwan.
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